भारत बाढ़ से प्रभावित देशों में चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। हर साल बिहार में भयंकर बाढ़ आती है। भयंकर बाढ़ त्रासदी/प्रलय मचाती है। फिर मुख्यमंत्री द्वारा यह कहा जाता है की जाता है की बाढ़ से निपटने के लिए सारी तैयारी कर ली गयी है। राहत और बचाव शुरू होता है। अगले साल फिर वही कहानी शुरू हो जाती है। ऐसा नहीं है कि बाढ़ सिर्फ पिछले कुछ वर्षों से आ रही है। पिछले कई दशको से बाढ़ आ रही है।

1954 की बाढ़ नियंत्रण नीति बनी। लोगों को लगा की अब कि तब बाढ़ से बचाने के लिए काम शुरू हो जाएगा। लेकिन अब ऐसा लग रहा है की बाढ़ नियंत्रण नीति सिर्फ पन्नो में छपने के लिए बनी है। वैज्ञानिकों और विद्वानों ने मौजूदा नीतियों की विफलता पर कई बार सवाल किया है और सुझाव भी दिए हैं। इंजीनियर और हाइड्रोलॉजिस्ट दिनेश कुमार मिश्रा ने कोसी नदी से होने वाले बाढ़ से निपटने के लिए तटबंधों के निर्माण पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन सरकार है की कुंभकर्ण की गहरी नींद में सो रहा हो।

बिहार में बाढ़ का मुख्य कारण इसकी भोगोलिक स्तिथि, भू-जलवायु परिस्थिति और विभिन्न कारण है। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो बिहार राज्य देश का सबसे अधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है। बिहार राज्य का लगभग 68.80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के क्षेत्र में आता है। यह बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र कुल क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत है। बिहार राज्य ने हाल के वर्षों में विनाशकारी बाढ़ देखी है। दक्षिण पश्चिम मानसूनी बारिश उत्तर बिहार के मैदानी इलाकों में बाढ़ का पर्याय बन गई है।
बिहार में बाढ़ से संपत्ति और मानव जीवन को भारी मात्रा क्षति हुई है। 1979 से जब से सरकार ने आंकड़े प्रकाशित करना शुरू किया है तब से अब तक कुल मिलाकर बाढ़ से 9,500 लोगो की जान गई है।
बिहार के मैदानी क्षेत्र को गंगा नदी दो असमान हिस्सों में विभाजित करती है। एक हो गया उत्तर बिहार का क्षेत्र और एक हो गया दक्षिण बिहार का क्षेत्र। समूचा उत्तर बिहार का क्षेत्र बाढ़ वाली नदियों के जाल से बिछा हुआ है। इन नदियों में घाघरा, गंडक, बागमती, कमला-बलान, कोसी और महानंदा जैसी नदियां है और यह सभी नदियां शक्तिशाली गंगा नदी में मिलती है। ये सभी नदियां नेपाल में हिमालय से निकलती हैं। वही दक्षिण बिहार में सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ आती है।

भौगोलिक दृष्टि से नेपाल एक पहाड़ी क्षेत्र है। जब मध्य और पूर्वी नेपाल के पहाड़ों में भारी बारिश होती है तो नारायणी, बागमती और कोशी नदियों जलस्तर बढ़ जाता है। जैसे-जैसे ये नदियां भारत में आती जाती हैं, वे बिहार के मैदानी और तराई क्षेत्रों में प्रवाहित होती हैं और इन नदियो में बढ़े हुए जलस्तर के कारण यह अपने किनारों से ऊपर बहनी लगती है। वही कोसी नदी में बढे हुए जलस्तर के कारण, इसके बांध और तटबंधों को टूटने से बचाने के लिए आगे बांध के द्वार खोल दिए जाते हैं जिससे बिहार में बाढ़ की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है।
वही दूसरी ओर घरेलू आवश्यकताओं के लिए लकड़ियों की बढ़ती मांग के कारण वनों की कटाई तेजी से बढ़ी है और जलग्रहण क्षेत्रों में वनस्पति का तेजी से क्षरण हो रहा है। वनों की कटाई से नदी के प्रवाह में गाद सामग्री की वृद्धि हुई है। नेपाल के नदियों का ढलान बहुत तेज है और वह आम तौर पर पहाड़ो के ढलान वाले क्षेत्र से बिहार के सादे भूमि पर राज्य में प्रवेश करते हैं। ढलान में अचानक गिरावट के कारण इन नदियों के प्रवाह द्वारा लाया गया गाद अपने सतह/ आधार पर जमा हो जाता है और बिहार के मैदानी इलाकों में बाढ़ का कारण बन जाता है।
इस कारण से भी उत्तर बिहार में के मैदानी इलाकों में बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है, जिससे कृषि, बस्ती और बुनियादी ढांचे का विनाश भी बढ़ा है।

राज्य में अधिकांश वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण जून से सितंबर महीने में होती है। औसत वर्षा 1200 मिमी होती है और 1000 मिमी से 2000 मिमी तक बारिश अलग अलग क्षेत्रो में होती है। इस बारिश के कारण नेपाल से उत्पन्न नदियों में पानी भरने के कारण बिहार के मैदानी इलाकों में बाढ़ आ जाती है। काले की 1997 समीक्षा रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि उत्तर बिहार के मैदानी इलाकों में बारिश से पिछले 30 वर्षों के दौरान सबसे अधिक बाढ़ आई है । इन वर्षों के दौरान बाढ़ प्रभावित क्षेत्रो में वृद्धि भी हुई है।
पिछले 55 वर्षों के विकास की योजना में, एक अनुमान के अनुसार बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का लगभग 42 प्रतिशत जगह ही बाढ़ सुरक्षा तटबंधों से कवर किया गया है। यदि राज्य को बाढ़ सुरक्षा तटबंधों से कवर करना है तो अगले 25 वर्षों में तटबंधों का निर्माण प्रति वर्ष 150 किमी की दर से किया जाना चाहियें। लेकिन क्या 25 वर्षो तक ऐसे बाढ़ की त्रासदी के झेलें। इसके लिए सरकार को तटबंधों के निर्माण की गति बढ़ानी पड़ेगी। नदियों का बेड लेवल हर साल बढ़ रहा है इस हिसाब से तटबंधों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए।
बिहार में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का एक अच्छा हिस्सा भी सतही जल और जल जमाव की समस्या से ग्रस्त है। यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 9.41 लाख हेक्टेयर भूमि जल भराव/ जल जमाव की समस्या से पीड़ित हैं। पिछले साल पटना में हुए थोड़ी सी बारिश से जल भराव / जल जमाव की स्तिथि उत्पन्न हो गयी थी। विशेषज्ञों द्वारा यह पाया गया है कि 2.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को अत्यधिक गहराई के कारण जल भराव से मुक्त करना मुश्किल होगा।

अस्सी के दशक के दौरान कई जल निकासी योजनाओं को डिजाइन और निष्पादित किया गया था। लेकिन उसके बाद धन की कमी के कारण, जल निकासी योजनाओं का कार्य स्थिर बना रहा। हालांकि कुछ योजनाओं को आंशिक रूप से निष्पादित किया गया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका।
जल संसाधन विकास रणनीति बिहार के विकास की कुंजी के रूप में माना जाता है। इसलिए, इस क्षेत्र में निवेश के लिए एक अच्छी नीति और पैकेज चाहिए।
प्राकृतिक बाढ़ के दीर्घकालिक समाधान और इसके नियंत्रण के लिए नदियों के प्रवाह पर नियंत्रण जरूरी है। इसके लिए मुख्य नदियों और उनकी सहायक नदियों की ऊपरी क्षेत्र में कई जलाशय बनाने चाहिए। यह योजना ज्यादातर नेपाल और उत्तर बिहार में लागु होनी चाहिये।

बाढ़ की समस्या से निदान के लिए सरकार को कई सारी योजनाओ पर काम करने की जरूरत है। इन योजनाओ में बांधों / पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण करना। तटबंधों का निर्माण करना। जलनिकास के लिए बेहतर योजना बनाना। राजमार्गों और सड़कों का निर्माण, जल निकासी पैटर्न और पानी का प्राकृतिक प्रवाह को ध्यान में रख कर करना चाहिए। वनों की कटाई से जलग्रहण क्षेत्रों में नुकसान हुआ है जल प्रवाह को विनियमित करने के लिए नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वनीकरण होना चाहिये। बाढ़ और भूकंपरोधी आवास/घर बनाने पर जोर देना चाहिये।
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