युद्ध की स्तिथि में भारत चीन पर कितना भारी पड़ेगा।

चीन जानता है कि भारत के साथ युद्ध का या हमले का परिणाम चीन के लिए विनाशकारी होगा। साथ ही हिमालयन रेंज दोनों देशों के बीच स्थित है। हिमालय की चोटियों को पार करना और भारतीय धरती पर आने की कोशिश करना जब भारतीय सेना की एक विशाल सैन्य टुकड़ी सामने होगी, चीनी सेना के लिए एक आत्मघाती कदम होगा।

सहयोगी के रूप में कहे तो हम एक कूटनीतिक दुनिया में रहते हैं। यहां कोई दोस्त और कोई दुश्मन नहीं है केवल अपना स्वार्थ है। इसलिए मेरे हिसाब से चीन को पाकिस्तान का समर्थन नहीं मिलेगा, जो कि कश्मीर चाहता है। लेकिन हम सभी बुरी परिस्तिथियां लेकर चलते है और यह मान लेते है कि पाकिस्तान पश्चिम से भी एक नया मोर्चा खोल सकता है। जबकि युद्ध के दौरान भारत का समर्थन करने वाला कोई देश नहीं है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल जैसे देश भारत को हथियार बेचकर भारत का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन वह व्यापार होगा, बजाय समर्थन के।

रूस की बात करें तो रूस का झुकाव चीन की तरफ अधिक है अभी हाल ही में रूस ने चीन को S-400 मिसाइल सिस्टम बेचा है। हालांकि भारत के पास S-400 साल के अंत तक आ जायेगा। हम यहाँ यह मान के चलते है कि रूस दोनों देशों के बीच तटस्थ(न्यूट्रल) रहेगा।

जो लोग सोचते हैं कि 1971 के युद्ध की तरह भारत के लिए रूस सहयोगी के रूप में आएगा तो वह 50 साल पहले की बात थी। आज की परिस्तिथियां अलग है।उदाहरण के लिए, 80 साल से भी कम समय पहले, अमेरिका और जापान एक दुश्मन देश थे। मगर आज दोनों देश एक दुसरे के सहयोगी हैं।

कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि 1962 की लड़ाई के विपरीत, भारतीय सेना अब बहुत मजबूत स्थिति में है। जबकि कुछ चीन के रक्षा बजट को भारत से चार गुना होने पर चीनी सेना के मजबूत होने का इशारा करते हैं। वर्तमान समय में, भारत को भूगोल में एक फायदा है, क्योंकि भारतीय सेना बल सीमा के करीब है। दोनों पक्ष सीमा पर बड़ी मात्रा में सेना और हथियार भेजेंगे। अब सीधे भारतीय सेना और चीनी सेना की तुलना करते हैं।

जमीन पर

जमीन पर सैन्य संसाधनों के दायरे में, चीन के पास 3,500 टैंक, 33,000 बख्तरबंद वाहन, 3,800 स्व-चालित तोपखाने, 3,600 टोल्ड आर्टिलरी और 2,650 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं।


इस बीच  भारत के पास 4,292 टैंक, 8,686 बख्तरबंद वाहन, 235 स्व-चालित तोपखाने, 4,060 टोल्ड आर्टिलरी और 266 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं।

हवाई क्षमता

चीन का हवाई बेड़े में कुल 3,444 एयरक्राफ्ट  है, और इसमें 1,232 फाइटर जेट, 371 डेडिकेटेड अटैक क्राफ्ट, 224 ट्रांसपोर्ट के लिए, 314 ट्रेनर, 111  विशेष मिशन के लिए, 911 हेलिकॉप्टर और 281 अटैक हेलीकॉप्टर शामिल हैं।

भारतीय हवाई बेड़े में 2,141 एयरक्राफ्ट  है, जिसमें 538 फाइटर जेट, 172 डेडिकेटेड अटैक क्राफ्ट्स, 250 ट्रांसपोर्ट के लिए, 359 ट्रेनर,  77 विशेष मिशन के लिए, 722 हेलिकॉप्टर और 23 अटैक हेलीकॉप्टर शामिल हैं।


नौसैनिक बल


वर्तमान में चीन के पास दो विमान वाहक, 36 विध्वंसक, 52 फ्रिगेट, 50 कोरवेट, 74 पनडुब्बी, 220 गश्ती जहाज और 29 युद्ध के लिए युद्धक विमान हैं।

इस बीच, भारतीय बेड़े में एक विमानवाहक पोत, 10 विध्वंसक, 13 फ्रिगेट, 19 कोरवेट, 16 पनडुब्बियां, 139 गश्ती जहाज और तीन युद्ध के लिए युद्धक विमान शामिल हैं।

परमाणु युद्धक

एसआईपीआरआई 2020 के अनुसार, वर्तमान में चीनी के पास 320 परमाणु शस्त्रागार है, जबकि भारत के पास 150 परमाणु शस्त्रागार है।

चीनी सेना द्वारा किसी भी लड़ाई को जीतने के लिए, उनके पास बहुत मजबूत आपूर्ति लाइनें होनी चाहिए। जैसा कि आप जानते हैं, चीन के साथ 95% से अधिक भारतीय सीमा वास्तव में चीन का नहीं है, यह तिब्बत के विवादित क्षेत्र के साथ है। अब, दूसरी ओर  भारत को आपूर्ति के लिए ऐसी कोई समस्या नहीं है। इसके अलावा मैं यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि भारत ने धर्मशाला में तिब्बत के लिए निर्वासन में सरकार चलाने की अनुमति दी है। चीनी सेना को परेशान करने के लिए भारत निश्चित रूप से तिब्बती आबादी को मनाएगा।

मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि नंबरों में निश्चित रूप से चीन के पास प्लस पॉइंट है लेकिन यह कागज पर है। वास्तविकता अलग हो सकती है।

चीन यह जानता है कि चीन युद्ध लड़ने के बजाय। इकोनॉमी को भारत के सामने एक घातक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा। एशिया और अफ्रीका में बहुत से देश हैं जो चीन से वित्तीय मदद लेते है। आईएमएफ और विश्व बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिए कुछ मानदंडों को पूरा करने की आवश्यकता होती है। ऐसे में चीन इन देशों की आर्थिक मदद करता है।

चीन इन एशियाई और अफ्रीकी देशों में हथियारों और बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की आपूर्ति भी करता रहा है। समस्या यह है, कि इन देशों के पास चीन को वापस पैसा देने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं।

पाकिस्तान के पास दुनिया के किसी भी अन्य वित्तीय संस्थान से ज्यादा चीन का पैसा है। जो अब पाकिस्तान के लिए वापस करना मुश्किल है। जब यह देश उन्हें चुका नहीं पाते है, तो चीन उन देशों से पहले से ही निर्मित बुनियादी ढांचे पर कब्जा करने के लिए कहता हैं, जिसके परिणामस्वरूप इन देशों में चीनी पकड़ में वृद्धि हुई है। यही हाल नेपाल और श्रीलंका के साथ भी है।
यह चीनीयों द्वारा बिछाया ऋण जाल है। इससे देश पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जाता है।


चीन द्वारा इन देशों में स्थापित व्यापार ठिकानों को समय आने पर सैन्य ठिकानों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भारत के लिए एक बड़ी समस्या होगी, क्योंकि ये ठिकाने भारत को हर तरफ से घेरे हुए हैं।


तो भारत इसके खिलाफ क्या कर सकता हैं?

मुझे इसका केवल एक समाधान ही नज़र आता है कि हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें। मुझे पता है कि यह आंदोलन असंभव लगता है। लेकिन अपने चारों ओर देखो। हमारे घर में कम से कम उत्पादों में से आधे से अधिक चीनी उत्पाद हैं। चीन सचमुच हमारे घरों में है।

एक मध्यम वर्ग का आदमी अपनी मेहनत की कमाई से लाए गए इन उत्पादों को नहीं फेंक सकता है। चीनी उत्पादों की जगह भारतीय उत्पाद का इस्तेमाल एक दिन या एक वर्ष में नहीं होने लगेगा। लेकिन यह अगले पांच वर्षों में निश्चित रूप से होगा और यह अब शुरू हो गया है। हम भारतीयों को अब से केवल स्थानीय भारतीय उत्पादों और भारत में निर्मित उत्पादों को खरीदना शुरू करना चाहिए।


अगर युद्ध हुआ तो युद्ध के बाद दोनों पक्षों में बड़े पैमाने पर नुकसान होगा और हताहतों की संख्या का अंदाजा लगाना भी मुश्किल होगा। भारत को आज जो सबसे बड़ा फैसला करना है वह है चीन के खिलाफ राजनीतिक रुख अपनाना।


भारत को चीन के खिलाफ राजनीतिक स्टैंड लेना शुरू करना होगा। जब अमेरिका चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगाता है तो हमें अमरीका का समर्थन करना चाहिए। हमें वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई आदि देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहिए जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के साथ टकराव का सामना करते हैं।

इससे भारत आधुनिक इतिहास में पहली बार विक्रेता बन सकेगा। हम हथियार बेच सकते हैं, बुनियादी ढांचे का निर्माण कर सकते हैं और इन देशों के साथ व्यापार कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था का व्यापक विकास होगा।

इन आकड़े को लेकर मैं केवल इतना कह सकता हूं कि यह दोनों के लिए बहुत महंगा युद्ध होगा। भारत के पास चीन के खिलाफ पारंपरिक युद्ध जीतने की अधिक संभावना है। चीन और भारत दोनों ही  परमाणु  संपन्न देश हैं इसलिए परमाणु हथियार बीच में नहीं आएंगे। इसलिए, अंतिम निर्णय यह है कि भले ही भारत विजयी होगा, लेकिन दोनों देशों को भारी कीमत चुकानी होगी। लेकिन भविष्य में, भारत के पास युद्ध में चीन को मात देने का एक अच्छा मौका होगा।

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