तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
तकनीकी प्रगति आर्थिक विकास में उन्नति के साथ आती है। चीन आर्थिक रूप से तेजी से भारत के आगे निकल गया। भारत आज़ादी के बाद शुरुआती वर्षो में चाइना से काफी बेहतर स्थिति में था। लेकिन पिछले कुछ 40 वर्षोँ में चीन के विकास के दृष्टिकोण ने भारत को काफी पीछे छोड़ दिया है। हालांकि भारत ने भी अच्छी प्रगति की है लेकिन चीन से काफी पीछे है। इसलिए आज हम आपको बताएंगे की तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन के आंकड़े एक दूसरे से कैसे अलग है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में देश की क्षमता को मापने के लिए हम पेटेंट, आर एंड डी और वैज्ञानिक जर्नल को एक जरिया मान लेते हैं। 2018 में चीन का आरएंडडी में निवेश 297.1 बिलियन डॉलर था। जो दुनिया भर में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। 297.1 बिलियन डॉलर का आरएंडडी पर खर्च पूरे यूरोप के आरएंडडी पर खर्च से अधिक है। वहीं भारत का आरएंडडी निवेश 16.8 बिलियन डॉलर है जो दुनिया में 18 वें स्थान पर है और चीन के आरएंडडी का केवल 5.6% है।
चीन अपने आरएंडडी और उद्योग की रणनीति के आधार पर तकनीकी क्षेत्रों काफी आगे निकल गया है। जैसे परमाणु ऊर्जा, चीन 2030 तक दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा उत्पादक देश बन जाएगा। 2016 में चीन 34 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करता था जो कि 2030 में 111 गीगावॉट हो जाएगा। वही पेटेंट आवेदनों की संख्या को देखे तो चीन दुनिया में पहले स्थान पर है। यहां पर भारत के पेटेंट चीन के कुल पेटेंट आवेदनों की संख्या का 3% से कम है।
अब कुछ तकनीकी पहलुओ की तुलना करते हैं।
चीन में साक्षरता दर 1982 में 79 प्रतिशत थी जो की 2010 में बढ़कर 97 प्रतिशत हो गई है। वही भारत में 2018 में साक्षरता की दर लगभग 74.4 प्रतिशत थी। इन साक्षर लोगों में अधिकांश भारतीय पुरुष साक्षर थे।

हाई स्पीड रेलवे के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
चीन के हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क की लंबाई 2019 में 29000 किमी थी। तो वही भारत के हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क की लंबाई 0(शुन्य) किमी है। भारत ने अभी मुंबई से लेकर अहमदाबाद तक हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क बिछाना शुरू ही किया है।
इलेक्ट्रिक बसों के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
2018 में दुनिया के शहरों में लगभग 425,000 इलेक्ट्रिक बसें सेवा में थीं। इसमें आश्चर्य की बात यह है कि इन इलेक्ट्रिक बसों में लगभग सभी 99 प्रतिशत चीन में थीं। तो वही भारत अब भी इलेक्ट्रिक बसों को चलाने के लिए अपना प्लान ही बना रहा है इसलिए इलेक्ट्रिक बसों की तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन में से भारत को अभी भी बहुत काम करना है।
ऊंची इमारतों की तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
दुनिया में शीर्ष 50 सबसे ऊंची इमारतों की एक सूची में 28 तो अकेले चीन में है। शंघाई टॉवर 632 मीटर का है जो की चीन में है बुर्ज खलीफ़ा के बाद शंघाई टॉवर दुनिया की सबसे ऊंची इमारत है। इन 50 ऊंची इमारतों की सूची में भारत का कोई भी इमारत नहीं है।
दुनिया की शीर्ष 20 तकनीकी कंपनियों में से 9 चीन की कंपनियां हैं। बाकी सभी अमेरिका की हैं। इन शीर्ष 20 कंपनियों की लिस्ट में कोई भी भारतीय कंपनी नहीं है।
सुरंगों का निर्माण के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
यह तो हम सभी जानते हैं कि सुरंगों का निर्माण करना बहुत कठिन है। कुछ साल पहले केवल जर्मनी और जापान ही सुरंग निर्माण करने वाली मशीनें(टीबीएम) बनाते थे। चीन को इन मशीनें के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। तब चीन ने सुरंग निर्माण करने वाली मशीन खुद बनाने फैसला किया। आज चीन के पास भी सुरंग निर्माण करने वाली मशीन है। वही भारत को सभी टीबीएम(सुरंग निर्माण करने वाली मशीन) दुसरे देशो से मांगना पड़ता है। भारत के पास टीबीएम मशीन निर्माण करने की कोई क्षमता नहीं है।
अंतरिक्ष के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन ने 50 के दशक में शुरुआत की और भारत से एक दशक आगे था। मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रमों में चीन हमेशा शामिल होता रहा है। भारत को अभी तक मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान शुरू करना है और यहां भी भारत चीन से बहुत पीछे है।

टेलिकॉम नेटवर्क तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
2025 तक, 5 जी नेटवर्क के 1.2 बिलियन उपयोगकर्ता होंगे। इस 1.2 बिलियन में से एक-तिहाई अकेले चीन में होंगे। चीन की हुआवेई अब दुनिया की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी है। भारत ने अभी तक 5 जी तकनीक की नीलामी भी नहीं की है। इसके अलावा भारत में हुआवेई, जेडटीई जैसी कोई घरेलू तकनीकी दिग्गज कंपनी भी नहीं है इसलिए टेलिकॉम के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन में से भारत को अभी भी 5G नेटवर्क पर काम करना है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर के तकनीक के क्षेत्र में भारत और चीन
इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो चीन 6 महीने से कम समय में 100 मीटर लंबा एक पुल बना लेती है और यहां भारत को एक ही पुल बनाने में कम से दो डेडलाइन चाहिये होते है और कभी कभी तो यह 2 डेडलाइन भी कम पड़ जाते हैं।
सही मायनों में तकनीक के क्षेत्र चीन भारत से मीलों आगे निकल चुका है। चीन और भारत के बीच प्रौद्योगिकी का अंतर कम नहीं होगा बल्कि भविष्य में बढ़ेगा। अगर भारत चीन के साथ प्रौद्योगिकी में पकड़ बनाना चाहता है, तो भारत को हर साल कम से कम 20 गुना अधिक आरएंडडी फीस का निवेश करना चाहिए।
भारत में राजनीतिक समस्या हमेशा से रही है। एक तरफ लोकतंत्र में लोग इतनी सारी राजनीतिक दलों से घिरी है। लेकिन विकास के लिए किसी भी राजनितिक दल के पास विकास का दृष्टिकोण नहीं है।
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