जैसा कि हम सब लोगों ने कहानियो, किस्सों, किताबों और इतिहास के पन्नो में पढ़ा है कि शाहजहां ने मुमताज की याद में दुनिया के सात अजूबो में से एक ताजमहल का निर्माण करवाया था। लेकिन यह हम सब लोगों को कम ही पता होगा कि मुमताज़ शाहजहां कि सात पत्नियों में से दूसरी पत्नी थी।
शाहजहां, जहाँगीर के तीसरे बेटे थे । शाहजहां का जन्म 5 जनवरी, 1592 को लाहौर में हुआ था और उन्हें खुर्रम का नाम दिया गया था। 1627 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद वह गद्दी पर बैठे।
मुमताज़ महल जो कि अर्जुमंद बानो बेगम के नाम से भी जानी जाती है। उनका जन्म 27 अप्रैल 1593 आगरा में एक फारसी परिवार में हुआ था। मुमताज़, अबू-हसन आसफ खान की बेटी थी, जो एक अमीर फ़ारसी रईस था।
मुमताज़ महल ने 30 जनवरी 1607 को शाहजहाँ के साथ सगाई किया गया था। तब वह उस समय मुमताज की आयु 13 वर्ष की थी और शाहजहां की आयु 15 वर्ष की थी। हालाँकि, 30 अप्रैल 1612 को अपने सगाई के पाँच साल बाद शादी की थी। लेकिन इस बीच में शाहजहां ने सगाई और विवाह के बीच के में, शाहजहाँ ने 1609 में अपनी पहली पत्नी कंधारी बेगम से विवाह कर ली थी। हालांकि पहली पत्नी कंधारी बेगम से विवाह एक राजनीतिक विवाह बताया जाता है। शाहजहां की कंधारी बेगम से दो बेटियाँ थीं। शाहजहां ने 1617 में, डेक्कन की जीत के बाद, 2 सितंबर 1617 को इज्ज़-उन-निसा बेगम से बुरहानपुर में विवाह किया। इज्ज़-उन-निसा बेगम से एक बेटा हुआ। इसके बाद शाहजहां ने 5 विवाह और किया जो कि राजनीतिक विवाह माने जाते है।

मुमताज से शाहजहां के 14 बच्चे थे जिसमे से केवल केवल 7 वयस्कता प्राप्त कर सके। कुछ इतिहासिक किताब से संकेत मिलता है कि मुमताज की 36 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई, जबकि कुछ का सुझाव है कि उनकी मृत्यु 38 वर्ष की आयु में हुई थी। लेकिन तथ्य यह है कि वह हर साल व्यावहारिक रूप से गर्भधारण कर रही थीं, लगभग पन्द्रह साल तक गर्भधारण के इस दर्द को सहती रही और गर्भावस्था के बाद की जटिलताओं के कारण 7 जून 1631 अपने 14 वें बच्चे को जन्म देते समय 30 घंटे से ज्यादा चले लेबर पैन के कारण उनकी मृत्यु हो गई। बाद में 14 वें बच्चे का नाम “गौहर बेगम” रखा गया था। यह भी नहीं है कि शाहजहां को उसकी वासना या यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए उनके पास अन्य महिलाएं नहीं थीं। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, उनके पास 2000 महिलाओं का एक समूह था।
शाहजहाँ मुमताज पर इतना भरोसा किया करते थे कि उसने उसे अपनी शाही मुहर, मुहर उज़ाह भी दे दी थी। मुमताज महल पदशाह बेगम थीं, उनकी मृत्यु के बाद उनकी सबसे बड़ी बेटी जहाँआरा बेगम को यह पद दिया गया था।
जब मुमताज महल की मृत्यु 17 जून 1631 में हुई, तो शाहजहां दिल टूट गया और वह कुछ दिनों की अवधि के लिए गहरे शोक में चले गए। जिसके बाद शाहजहां मुस्लिम दुनिया भर के कारीगरों को एक स्मारक बनाने के लिए बुलाया, जो उनके लिए उनके प्यार की निशानी होगी। ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ था, 22 साल बाद ताजमहल बनकर तैयार हो गया। ऐसा माना जाता है कि ताजमहल की नकल बनाने से रोकने के लिए शाहजहां ने मजदूरों के हाथ काट लिए थे।
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